Hindi Kavita on Life
थोडा व्याकुल हूँ मैं,
थोडा परेशान हूँ मैं,
कल जो पढ़ी थी
ख़बर सामूहिक बलात्कार की
उसे सोच-सोचकर
अब तक हैरान हूँ मैं.
क्या उन लोगों ने भी
औरत के पेट से जन्म लिया है,
जिन्होंने एक औरत को चीर फाड़कर अपनी
मर्दानगी का सबूत दिया ही.
क्या उन लोगों ने भी
दूध पिया था औरत की छाती का,
या उनलोगों की भूख भागी थी
दूध पीकर शूकर का. Hindi Kavita
अब जनता को उठाना होगा,
आज़ाद देश में अब
आज़ादी के लिए लड़ना होगा.
लोगों के दिल में क्रांति लानी होगी,
अब आन्दोलन करना होगा,
बेशक कुछ लोगो को मरना होगा.
करने वालों की मौज ने
कितनी जिंदगियां उजाड़ी है.
अब कुछ करने की
आम जनता की बारी है.
सरकार पैसा कमाने में व्यस्त है
जनता की हालत अस्त-व्यस्त है.
देश के रखवालों से ही
आज देश में दहशत है.
उस मासूम की जिंदगी का
मैदान अभी खाली था,
बीज तो बोये गए पर
पौधे निकलना बाकी था
उसको पूजा जाना था
देवित्तव उसमे बाकी था.
दरिंदो ने कुछ ना देखा
कौन इसका दोषी था.
मसला, कुचला और उसको
जीने के लिए छोड़ दिया.
शायद मरना उसका बाकी था.
आँखे कानून की अब टॉक ना खूली
आँखों के उसके अब तक पट्टी है,
इन्साफ अब ना हुआ तो कभी ना होगा
सरकार को तो बस राजनीती में दिलचस्पी है.
मारो इनको मार गिराओ
शरीर को इनके भेद दो,
नमक से भर डालो
जितने शरीर में छेड़ हों.Hindi Kavita
आह्वान करो, ऐलान करो
लाखों लाख लोग बुलाओ,
जो करे ऐसा अपराध
उसको सामने सबके
जिंदा काटो, तडपा कर जलाओ
प्यार से सिखाओ रहना सबको
या दिल में डर बिठाओ, Hindi Kavita
हिंसा करो या अहिंसा करो
अपराधमुक्त चलो देश बनाओ
प्रवेश कुमार “पीके”
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Hindi Kavita Lyrics
हजारों मील तुम मुझसे दूर चले गए,
मेरे ही घर में मुझे तन्हा कर गए.
तुम्हारी कितनी होती है मुझे फ़िक्र
जैसे मेरे शारीर से निकल रहा हो जिगर.
कैसे मैं एक-एक पल काटता हूँ
ख़ुदा से तुम्हारा साथ ज़िन्दगी भर मांगता हूँ.
तुम्हारे आने तक क्या होगा मेरा मैं नहीं जानता,
मैं रहूँ न रहूँ तू तहे सलामत यही मांगूं मन्नता.
रास्ते पर इंतजार में रहे नजर सुबह-शाम, दोपहरी.
जैसे बैग में पहरा दे रहा हो कोई पहरी.
मुझे ना सोचना तुम अपना रखना ख्याल.
तुम रहोगे खुश तो मैं भी रहूँगा खुशहाल. Hindi Kavita
हर घड़ी मैं तुम्हारे लिए रहता हूँ बैचेन.
रो-रो कर तुम्हारी याद में थकते नहीं नैन.
ऐ ख़ुदा मुझपर कोई ऐसा करिश्मा कर,
वो बने मेरी ’वधु’ मैं उसका ‘वर’.
अब और इंतजार ना दिल चाहता है,
बस रूह से उसका दुलार चाहता है.
इंतजार करके थक चूका है शरीर,
ऐ ख़ुदा करदे मुझे आज़ाद खोल दे ज़ंजीर.
सारी बंदिशे तोड़कर उनसे मिलना है,
दुनिया का क्या इसका तो काम जलना है.
ऐ ख़ुदा मर जाऊंगा गर अब करना पड़ा इंतजार
औए कर मेरा और मुझे उसका मेरा रोम-रोम रहा पुकार.
प्रवेश कुमार “पीके”
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Hindi Kavita On Child Labour
एक दिन मुझे दोस्त मिला मेरा
उसने कहा सुना क्या हाल है तेरा,
मैंने कहा मज़बूरी से लड़ रहा हूँ
इसलिए डस घंटे की नौकरी कर रहा हूँ.
उसने कहा तुम अजीब हो मियाँ
नौकरी तो हम भी करते हैं,
हम तो करते हैं मस्ती वहां
आप जैसे उसे मज़बूरी कहते हैं.
उसने कहा मज़बूरी और मस्ती में
मियाँ कुछ तो तुम फर्क करो,
हमारे लिए तो दोनों एकसे हैं
आप ही हमारा भ्रम दूर करो.
मैंने कहा मुफ्त की सलाह बाज़ार में
थोक के भाव बिक जाती है,
जब लगती है वक़्त की चोट Hindi Kavita
आँखें अपने आप खुल जाती हैं.
उसने कहा वक़्त का इंतजार करूँगा
लेकिन अभी मैं चलता हूँ,
तब तक आप वफ़ा करो मज़बूरी से
मैं मस्ती से रिश्तेदारी करता हूँ.
कुछ दिन बाद वो दोस्त मिला रस्ते में,
चलते-चलते मैंने हाल पूछा हस्ते में.
उसने कहा वहां दिल लगाना दुश्वार हो गया,
इसलिए नौकरी से हमारा तकरार हो गया,
सोचा कुछ दिन घर पर बिताऊंगा,
पर घरवालों को ये नागवार हो गया,
अब सोचता हूँ कैसी भी नौकरी मिल जाये
और मैं नौकरी पाने को बेकरार हो गया.
Hindi Kavita
मैंने कहा अभी सही वक़्त आया है
पर मज़बूरी को बेकरारी का नाम ना दो,
तुमने वक़्त का सिर्फ थप्पड़ खाया है
सब ठीक होगा, हिम्मत से काम लो,
मैंने कहा रजाई में बैठकर दोस्त
दिसम्बर की सर्दी का अंदाज़ा लगाना ठीक नहीं,
किसिस गरीब की मज़बूरी देखकर
अपनी मस्ती का जाम छलकाना ठीक नहीं.
टैक्स की चोरी करके नेता जी Hindi Kavita
महंगाई कम करने का भाषण तो दे जाता है,
पर महंगाई है चीज क्या ये तो वो गरीब
जिसने पी है फीकी चाय, वो ही जनता है.
उसने मेरा हाथ पकड़कर नम आँखों से कहा
मियाँ आज ज़माने का सच समझ में आया है,
हर इंसान है मजबूर यहाँ पर
मस्त तो वही है जिसके पास माया है.
प्रवेश कुमार “पीके”
True Lines About Life in Hindi
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Hindi Prem Kavita
तूने जब से मुझको छुआ है
कोई भी सपर्श अच्छा नहीं लगता,
झूठा-झूठा सा लगता है
मुझे तेरे सिवा हरेक रिश्ता.
तेरे ख्यालों के साथ मैं
हर वक़्त रहना चाहता हूँ,
इसलिए दो मिनट की दूरी मैं
दस मिनट में तय करता हूँ.
तेरे मेरे बीच जो आए
मुझे दुश्मन नजर आता है,
मैं कोशिश करता हूँ तुझे भुलाने की
मगर दिल भूले नहीं भूलाता है.
ये तेरा मेरा रिश्ता अब Hindi Kavita
जाने क्या-क्या रंग दिखलायेगा,
मुझको तो ये जानना है की
कौन इसे अपनाएगा और कौन ठुकराएगा.
तू इक अकेली मेरी ताकत है
तू दामन अपना मुझसे छुड़ा ना लेना,
तू साथ रहना हर घड़ी, हर वक़्त
चाहे दोस्त बने या दुश्मन बने ज़माना.
प्रवेश कुमार “पीके”
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Hindi Kavita About Love
तेरा सफ़र मेरा सफ़र
तू कितना खुबसूरत है हमसफ़र,
मुझपर दाल तू इक नजर
तेरा भी दिल चाहे अगर.
मैं करना चाहुँ तुझसे प्यार
गर मुझपे हो ऐतबार,
मैं करना चाहूँ इश्क़-ए-करार
दिल मेरा है बेक़रार. Hindi Kavita
प्यार है तो सब है सही
प्यार नहीं तो तू नहीं, मैं नहीं,
और ये सारा जहाँ नहीं
महापुरुषों ने ये बात कही.
इंतजार करूँ मैं कितना तेरा
मेरा सबकुछ है अब तेरा,
मुझे नहीं अब शुकून कहीं
तेरे दिल में चाहूँ मैं बसेरा.
अब तक चुप क्यूँ है तू
अब तेरा मेरा ना कर तू,
अब तेरा मेरा है हमारा
मेरे जैसा ना पायेगी तू.
ख़ुदा ने मुझको भेजा है
ऐसे ही कोई किसीसे नहीं मिलता,
फूल और खुशबू जैसा है
ये तेरा और मेरा रिश्ता.
प्रवेश कुमार “पीके”
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Romantic Hindi Kavita for Her
एक दुसरे को लगे खींचने
आँखों ही आँखों में,
प्रेम कहानी शुरू हुई
बातों ही बातों में,
छुआ एक-दुसरे को दोनों ने
हाथों ही हाथों में.
रस था होंठों पर Hindi Kavita
होंठों से लग गए पीने.
दोनों के दिल धड़क रहे थे
साथ धड़क रहे थे सीने.
दो पहाड़ों के बीच से
युवक नीचे लगा उतरने,
नीचे था एक पवन झरना
युवक उसमे लगा तैरने.
युवती का दिल काँप रहा था
युवक को लगी वो रोकने,
वो भी था पानी अकड में
युवती को लग गया डांटने.
वो भी जब ना मानी तो
युवक को गुस्सा लगा आने,
उसने आव देखा ना ताव
लग गया अपनी अकड़ निकालने.
गुस्सा जब उसका शांत हुआ
तब वो लग गया मुरझाने,
युवती को आया गुस्सा
अब वो भी लग गई अकड़ने.
युवक बेचारा क्या करता
था वो मुरझाया मुरझाया,
युवतियों को तो वो भी ना हरा पाया
जिसने है स्रष्टि को बनाया.
प्रवेश कुमार “पीके”
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Heart Touching Poems In Hindi
हमसे हमारा बचपन छीनने जब जवानी आती ही,
सिर्फ यादें छोड़ जाती है सारी खुशियाँ ले जाती है.
नौकरी पाने की लालसा जब हमें सताने लगती है,
ज़माने भर की चिंताएं चेहरे पर नजर आने लगती हैं.
यारों दोस्तों के संग महफ़िल सब घुटने लग जाती है.
भविष्य के बारे में सोचकर रातों में नींद टूटने लग जाती है.
स्कूल में जल्दी जाकर जब पीछे के बेंच पर बैठते थे,
छोटे छोटे बेर खाकर दोस्तों पर बीज फेंकते थे.
याद करके उन बातों को दिल भर जाता हिया,
नाम मोबाइल में सबके है पर Hindi Kavita
डायल करने का वक़्त नहीं मिल पाता है.
कोई इंजिनियर बनना चाहता है कोई बनना चाहता है डॉक्टर,
कोई घर के पास नौकरी करता है कोई करता है मीलों जाकर.
कभी आपस में हँसते खेलते थे आज आपस में ही होड़ लगी है,
एक दुसरे से आगे निकलने की देखो कैसी दौड़ लगी है.
आँखें बंद करते ही अब गांधी की सूरत दिखती है,
जब लाख कोशिश करने पर भी छोटी सी नौकरी मिलती है.
बढती भ्रष्टाचारी को देखकर रोज इच्छाएँ बढती जाती है,
पर बेरोजगारी की महामारी में तनख्वाह
घर का खर्चा ही चला पाती है.
नई-नई जिम्मेदारियों का बोझ रोज बढ़ता ही जाता है
दोस्तों और रिश्तेदारों से अब संपर्क खत्म सा हो जाता है.
जब कच्छे में खेला करते थे वो अच्छे थे दिन बचपन के,
अब पेतिंस की उम्र मे हम लगने लगें हैं पचपन के.
प्रवेश कुमार “पीके”
Best Ghazal Collection of All Time
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Long Hindi Kavita Sangrah
वो बुढ़िया
एक बुढ़िया सड़क किनारे बैठी
आधे फाटे कपड़ो में लिपटी
टुटा-फूटा चश्मा उसकी आँखों पर
पल-पल में सरकता वो नाक पर
मिट्टी में मिले कुछ चनो को
अपने कांपते हाथों से बीनती है,
अपने पेट की भूख की ख़ातिर
कुत्तों से भी रोटी छीनती है…………….
वो बुढ़िया……………………………………
ऐसा गरीबी का साया मंडराया
मजबूरी का तमाचा खाया,
चेहरा धुप में ऐसा झलसाया
के वक़्त से पहले झुर्रियां ले आया.
वो बुढ़िया…………………………………….
राह चलते मुसाफिरों को
इक आस से ताकती है,
पेट में रखा जिसे नों महीने
आज उस औलाद को कोसती है.
जिसके खातिर ये हालत हो गई,
वो औलाद उसके लिए नहीं सोचती है.
वो बुढ़िया……………………………………..
मौत से उसको डर नही लगता
और मौत को सोचती भी है,
भूखी बेचारी कब तक जिए
ये सोच सोचकर रोती भी है.
वो बुढ़िया…………………………………..
जो सड़क किनारे बैठकर
अतीत को अपने सोचती है,
खड्डे वाली सड़कों पर
भविष्य अपना खोजती है.
वो बुढ़िया ……….Hindi Kavita
जिसकी औलाद उसको भूल चुकी है,
वो ना उनको भूल सकी है,
निर्दयी मदारी के आगे जैसे
एक मजबूर बंदरिया खड़ी है,
वो बुढ़िया……………………………………
जीभ जिसकी अब लडखडाती है
रूह भी गरीबी से डर जाती है,
हाथ पैरों ने साथ छोड़ दिया,
फिर भी वो पेट की खातिर
सारी हिम्मत बटोरकर
गरीबी से लड़ जाती है,
अब भी वो भूख की खातिर
कुत्तों से रोटी छिनती है.
वो बुढ़िया ………………………………..
सड़कों से कूड़ा बीनती है
हर इक सायें में उसको
अपनी परछाई लगती है,
गरीबी की इस हालत में
उसे ज़िन्दगी भी पराई लगती है.
वो बुढ़िया ………………………………
प्रवेश कुमार “पीके”
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Hindi Kavita on Poetry
फूटपाथ पर रहते लोगों को जब भूखे सोते देखा,
व्याकुल होकर तब मैंने सिर्फ इतना ही सोचा.
कि गरीबी क्या है……………………………………
भीख मांगते बच्चे जब गाली खाकर चुप हो जाते हैं,
इन्हें देखकर दिल में मेरे सिर्फ यही ख्याल आते हैं.
कि गरीबी क्या है…………..Hindi Kavita
रेहड़ी वाले मजदूरों से जब पुलिस वाले कमिशन खाते हैं,
गरीब मजदूरों के चेहरे बस यही पूछते रह जाते हैं
कि गरीबी क्या है……………………………………
पेट भरने की खातिर जब औरत तन बेचने लगती है,
प्रकृति भी शायद हमसे यही पूछना चाहती है
कि गरीबी क्या है……………………………………
किसी को पता हो तो मुझे भी बता दे
मैं भी बस यही जानना चाहता हूँ
कि गरीबी क्या है……………………………………
प्रवेश कुमार “पीके”
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Sad Hindi Kavita
हर दिन मैं भूखा होता हूँ,
हर रात मैं भूखा सोता हूँ.
यूँ तो हँसता हूँ दिखलाने को,
पर सच अन्दर से हरपल रोता हूँ.
सब पाना अच्छा लगता है,
पर कुछ खोने से मैं डरता हूँ,
यूँ तो रहता हूँ हमेशा भीड़ में,
पर सच मैं हरपल अकेला होता हूँ.
कौन है अपना कौन पराया.
इतना भी समझ नहीं पाता हूँ,
यूँ तो मंजिल पता है मुझको
पर रास्तों पर भटक सा जाता हूँ.
ख़ुदा से हरदम पूछता हूँ
पर खुद से पूछ नहीं पाता हूँ,
यूँ तो मेरा कोई कुसूर नहीं
पर जाने मैं क्यों सजा पाता हूँ.
प्रवेश कुमार “पीके”
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Hindi Kavita By Famous Poets
अच्छाई और बुराई में फर्क है क्या
ये मैं बिलकुल नहीं जनता,
करता हूँ मैं हर वो काम
मेरा दिल जो ठीक मानता.
कोई पूछता है जब मुझसे मेरा नाम
मैं कहता हूँ………….
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम.
हाथ में कागज़, कलम लेकर
मैं दुनिया को देखता हूँ,
इसकी खातिर हर चौक-चौराहे
फूटपाथ पर भी बैठता हूँ.
कोई पूछता है जब मुझसे मेरा काम
मैं कहता हूँ………….
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम.
मैं रोते को देखकर हँसता हूँ,
तो कभी-कभी साथ में ही रो देता हूँ.
कभी-कभी तो अपना साथ छोड़कर
मैं किसी और के साथ हो लेता हूँ.
कोई पूछता है मैं कैसा हूँ इंसान
मैं कहता हूँ………….
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम.
मैं खुद भी कभी लड़ता हूँ,
बिन बात लोगों से झगड़ता हूँ.
कसूर बेशक हो मेरा ही
मैं खुद को ही ठेक समझता हूँ.
कोई पूछता है क्या तू है शैतान
मैं कहता हूँ…………. Hindi Kavita
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम.
दुनिया में अपराध देखकर
खुद से मैंने यही पूछा,
क्या तू है सही या
तू भी है इन सबके जैसा
मेरे अन्दर हो गया सब सुनसान.
मैं इतना ही कह पाया………….
मैं हूँ रावण मैं हूँ राम.
प्रवेश कुमार “पीके”